मैं अक्सर
बड़े शहरों के
बड़े -बड़े बाजारों में
बड़े शहरों के
बड़े -बड़े बाजारों में
लोगों की चमक - दमक
वाली भीड़ में गुम सी
हो जाती हूँ ...
मैं अक्सर
मैं अक्सर
ऐसे बाज़ार में,
सामान कम लेने
सामान कम लेने
लोगों को पढने ज्यादा
जाती हूँ
जाती हूँ
सोचती हूँ कि मेरे देश में
जैसे
जैसे
कोई भी समस्या ही
नहीं है ,
ना भूख ना गरीबी
हर और खुशहाली
ना भूख ना गरीबी
हर और खुशहाली
चलते -चलते
एक शक्स को पूछ ही बैठी
एक शक्स को पूछ ही बैठी
कितनी जगमगाहट है यहाँ
खिलखिलाते चेहरे ,
ख़ुशी ही ख़ुशी
ख़ुशी ही ख़ुशी
कोई भी दुःख ,गम ,परेशानी
वह कडवी -कुनैन सी बोली बोला
,कैसी चमक ,
कहाँ की दमक
इन चेहरों के
इन चेहरों के
पीछे की सच्चाई
तुम क्या जानो
तुम क्या जानो
कार ,मकान, बिजनेस ,क़र्ज़ ,
तुम क्या जानो,
ना जाने
ना जाने
क्या -क्या भूलने आते है
यहाँ !
इन मुखोटों की
इन मुखोटों की
सच्चाई तुम क्या जानो ...!
मुखोटे पहनकर चलता हैं आदमी /खुशियों की नुमाइश करता हैं आदमी / हर बार आंसू ख़ुशी के नही होते / जिन्दगी भर चेहरा बदलता हैं आदमी ................सही लिखा उपासना
ReplyDeleteसच्चाई मुखौटों के पीछे छिपी होती है ,,,
ReplyDeleteRECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
आपकी यह पोस्ट आज के (२८ अक्टूबर , २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - कौन निभाता किसका साथ - पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteमुखौटे लगाकर छिपाते हैं लोग ...........
ReplyDeleteखूबशूरत रचना
ReplyDeleteयह रौशनी तो छलावा है
ReplyDeleteसबके चेहरे अँधेरे में गुम हैं
हर एक के चेहरेपर मुखौट है,
ReplyDeleteकोई किसी को नहीं पहचानता
नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग। एक चिपकी हुई मुस्कान।
ReplyDeleteI wanted to thank you for this good read!!
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