Sunday 4 January 2015

तुम्हारा और मेरा आसमान....

अब अलग-अलग
है क्या
तुम्हारा और मेरा
आसमान

मेरे आसमान पर
घने बादल
और
तुम्हारे आसमान पर
चाँद -तारे

मुझे इंतज़ार था
तुम्हारे संदेशों का
जो तुमने कहा होगा
चाँद और तारों से

मैं ढूँढती रही,
ताकती रही
बार -बार आसमान
और किया इंतज़ार
घटाओं के बरस कर
घुल जाने का

लेकिन वो
घटाएं मेरी आँखों में
उतर आई है

बरसती आँखें
ना देख पाई
आसमान में लिखा संदेश....

इंतज़ार है अब
तुम्हारे और मेरे आसमान के
एक होने का

6 comments:

  1. प्रेम सब को एक कर देगा .. मिला देगा ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  2. Thank you sir. Its really nice and I am enjoing to read your blog. I am a regular visitor of your blog.
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  3. आसमान के एक होने पर भी अलग अलग होने का आभास कितने रंग बिखेरता है !
    इस अद्वैत का द्वैत रूप दिखने मे ही रस है .....

    बहुत ही सुंदर रचना है ये आपकी, हमेशा की तरह .....
    नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाओ के साथ ....

    जाना पहचाना अंजाना !

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  4. बहुत सुन्दर रचना

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  5. Bahut bhawpurn...prem ras me dooba..ahsaas bhari rachna

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