कोहरे में निकली औरत
ठिठुरती , कांपती
सड़क पर जाती हुई ।
जाने क्या मज़बूरी रही होगी
इसकी अकेले
यूँ कोहरे में निकलने की !
क्या इसे ठण्ड नहीं लगती !
पुरुष भी जा रहें है !
कोहरे को चीरते हुए ,
पुरुष है वे !
बहुत काम है उनको !
घर में कैसे बैठ सकते हैं ?
लेकिन एक औरत ,
कोहरे में क्या करने निकली है ?
यूँ कोहरे से घिरी
बदन को गर्म शाल में लपेटे
सर ढके हुए भी
गर्म गोश्त से कम नहीं लगती।
कितनी ही गाड़ियों के शीशे
सरक जाते हैं ,
ठण्ड की परवाह किये बिना
बस !एक बार निहार लिया जाये
उस अकेली जाती औरत को !
कितने ही स्कूटर ,
हॉर्न बजाते हुए डरा जाते है
पास से गुजरते हुए।
वह बस चली जाती है।
थोड़ा सोचती
या मन ही मन हंसती हुई
वह औरत ना हुई
कोई दूसरे ग्रह का प्राणी हो ,
जैसे कोई एलियन !
ऐसे एलियन तो हर घर में है ,
फिर सड़क पर जाती
कोहरे में लिपटी हुई
औरत पर कोतूहल क्यों ?
ठिठुरती , कांपती
सड़क पर जाती हुई ।
जाने क्या मज़बूरी रही होगी
इसकी अकेले
यूँ कोहरे में निकलने की !
क्या इसे ठण्ड नहीं लगती !
पुरुष भी जा रहें है !
कोहरे को चीरते हुए ,
पुरुष है वे !
बहुत काम है उनको !
घर में कैसे बैठ सकते हैं ?
लेकिन एक औरत ,
कोहरे में क्या करने निकली है ?
यूँ कोहरे से घिरी
बदन को गर्म शाल में लपेटे
सर ढके हुए भी
गर्म गोश्त से कम नहीं लगती।
कितनी ही गाड़ियों के शीशे
सरक जाते हैं ,
ठण्ड की परवाह किये बिना
बस !एक बार निहार लिया जाये
उस अकेली जाती औरत को !
कितने ही स्कूटर ,
हॉर्न बजाते हुए डरा जाते है
पास से गुजरते हुए।
वह बस चली जाती है।
थोड़ा सोचती
या मन ही मन हंसती हुई
वह औरत ना हुई
कोई दूसरे ग्रह का प्राणी हो ,
जैसे कोई एलियन !
ऐसे एलियन तो हर घर में है ,
फिर सड़क पर जाती
कोहरे में लिपटी हुई
औरत पर कोतूहल क्यों ?
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर . नव वर्ष की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteनई पोस्ट : एक और वर्ष बीत गया
Saarthak ...lajawaab prastuti
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है ! अकेली औरत सबके कौतुहल का कारण बन जाती है बेवजह ही ! सुन्दर रचना !
ReplyDeleteसच बयाँ किया आपने ....समाज और पुरुष की सोच को बदलना होगा कानून और शिक्षा से ...
ReplyDeleteसच बयाँ किया आपने ....समाज और पुरुष की सोच को बदलना होगा कानून और शिक्षा से ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteसमाज की विकृत मानसिकता को उजागर करती रचना..
अच्छी कविता ! रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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