1)
शशि किरण
बनी ओस की बून्द
चातक मन
2)
झिलमिलाती
चपल बालक सी
चंचल बूंदे
3)
कोमल छवि
कर पर कांपती
मोती सी बूंदे
4)
बेबस मन
बरसती है बिन
बरखा बूंदे
शशि किरण
बनी ओस की बून्द
चातक मन
2)
झिलमिलाती
चपल बालक सी
चंचल बूंदे
3)
कोमल छवि
कर पर कांपती
मोती सी बूंदे
4)
बेबस मन
बरसती है बिन
बरखा बूंदे
बहुत सुंदर हायकू.
ReplyDeleteनई पोस्ट : फासले कब मिटा करते हैं
नई पोस्ट : लोकतंत्र बनाम कार्टूनतंत्र
सभी सुन्दर हाइकू ...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-01-2015) को ""आसमान में यदि घर होता..." (चर्चा - 1863) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर हाइकू
ReplyDeleteतमन्ना इंसान की ......
सभी हाइकू एक से बढ़कर एक उपसना जी
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
बहुत सुन्दर हाइकु...
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