उदासियों को
समझोगे
समझ आएगा
मन का अकेलापन
अंधकार को
समझोगे
समझ आएगा
दीपक का अकेलापन
इंतज़ार को
समझोगे
समझ आएगा
मेरा अकेलापन....
समझोगे
समझ आएगा
मन का अकेलापन
अंधकार को
समझोगे
समझ आएगा
दीपक का अकेलापन
इंतज़ार को
समझोगे
समझ आएगा
मेरा अकेलापन....
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-02-2015) को "जिन्दगी की जंग में" (चर्चा-1876) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनेता और भ्रष्टाचार!
Bahut sunder prateek diye hein...
ReplyDeleteShandaar...