Saturday 17 January 2015

हायकू ( बून्द )

1)
शशि किरण
बनी ओस की बून्द
चातक मन

2)
झिलमिलाती
चपल बालक सी
चंचल बूंदे

3)
कोमल छवि
कर पर कांपती
मोती सी बूंदे

4)
 बेबस मन
बरसती है बिन
बरखा बूंदे


6 comments:

  1. सभी सुन्दर हाइकू ...

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  2. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-01-2015) को ""आसमान में यदि घर होता..." (चर्चा - 1863) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सभी हाइकू एक से बढ़कर एक उपसना जी
    कभी फुर्सत मिले तो ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है

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  4. बहुत सुन्दर हाइकु...

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