Wednesday, 5 February 2014

ऐसे हाथों के साथ का इंतज़ार क्यूँ !

दो हाथ मिले
जिनमे न कोई वादा था
ना ही कोई इकरार
फिर से मिलने का
 मिले भी तो
मिलने के  लिए नहीं
बिछुड़ने के लिए ही मिले

बिछुड़ ही गए
अपनी -अपनी मंज़िल के लिए

बरसों बाद फिर मिले
इस बार भी मिलने के लिए नहीं
बिछुड़ने के लिए ही
ये हाथ  समय की चादर पर पड़ी
सलवटे ना दूर कर सके
बिन मिले ही बिछुड़ गए

जो हाथ
मिलने के लिए बने ही नहीं

फिर 
ऐसे हाथों के साथ का
इंतज़ार क्यूँ !
जो ज़माने की भीड़ का हिस्सा बन
गुम हो जाये
पुकारने पर भी ना आये
अनसुना ही रहे बन कर.…

लेकिन
समय के केलेंडर पर
जो तारीख ,' तारीख़ ' बन जाती है
वह रह -रह कर याद आती है







7 comments:

  1. मिलना और बिछुड़ना शायद जिंदगी का अंग है ---बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति l
    New post जापानी शैली तांका में माँ सरस्वती की स्तुति !
    New Post: Arrival of Spring !

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर भाव..

    ReplyDelete

  3. बहुत सुंदर रचना है भावजगत को उद्वेलित करती

    खिलते हैं गुल यहाँ मिलके बिछुड़ने को

    ReplyDelete
  4. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

    ReplyDelete
  5. आपकी प्रेरक टिप्पणियों के लिए आभर उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई .

    ReplyDelete
  6. सुन्दर रचना

    ReplyDelete