दो हाथ मिले
जिनमे न कोई वादा था
ना ही कोई इकरार
फिर से मिलने का
मिले भी तो
मिलने के लिए नहीं
बिछुड़ने के लिए ही मिले
बिछुड़ ही गए
अपनी -अपनी मंज़िल के लिए
बरसों बाद फिर मिले
इस बार भी मिलने के लिए नहीं
बिछुड़ने के लिए ही
ये हाथ समय की चादर पर पड़ी
सलवटे ना दूर कर सके
बिन मिले ही बिछुड़ गए
जो हाथ
मिलने के लिए बने ही नहीं
इंतज़ार क्यूँ !
जो ज़माने की भीड़ का हिस्सा बन
गुम हो जाये
पुकारने पर भी ना आये
अनसुना ही रहे बन कर.…
लेकिन
समय के केलेंडर पर
जो तारीख ,' तारीख़ ' बन जाती है
वह रह -रह कर याद आती है
जिनमे न कोई वादा था
ना ही कोई इकरार
फिर से मिलने का
मिले भी तो
मिलने के लिए नहीं
बिछुड़ने के लिए ही मिले
बिछुड़ ही गए
अपनी -अपनी मंज़िल के लिए
बरसों बाद फिर मिले
इस बार भी मिलने के लिए नहीं
बिछुड़ने के लिए ही
ये हाथ समय की चादर पर पड़ी
सलवटे ना दूर कर सके
बिन मिले ही बिछुड़ गए
जो हाथ
मिलने के लिए बने ही नहीं
फिर
ऐसे हाथों के साथ काइंतज़ार क्यूँ !
जो ज़माने की भीड़ का हिस्सा बन
गुम हो जाये
पुकारने पर भी ना आये
अनसुना ही रहे बन कर.…
लेकिन
समय के केलेंडर पर
जो तारीख ,' तारीख़ ' बन जाती है
वह रह -रह कर याद आती है
मिलना और बिछुड़ना शायद जिंदगी का अंग है ---बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति l
ReplyDeleteNew post जापानी शैली तांका में माँ सरस्वती की स्तुति !
New Post: Arrival of Spring !
बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
बहुत सुंदर भाव..
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ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है भावजगत को उद्वेलित करती
खिलते हैं गुल यहाँ मिलके बिछुड़ने को
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteआपकी प्रेरक टिप्पणियों के लिए आभर उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई .
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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