मौत कितनी आसान है
और
जिंदगी कितनी कठिन
ये कठिनता पार कर ही तो
आसानी मिलती है
कौन अपना
कौन पराया यहाँ ,
सबके सब है यहाँ
नकाब -धारी
नकाबों से झांकती
आँखों में
जब से देखा भय
जिंदगी के लिए
भय दूर हो गया मौत का
भय नहीं लगता है
मुझे अब ,
जब से जिंदगी को देखा
करीब से
मौत ही अपनी सी लगी
एक दिन उसकी गोद ही तो मंज़िल है
अच्छी और सच्ची !
अभी तो जिन्दा रहना है
कुछ बरस और मुझे ,
मांगने से भी
मौत मिली है कभी !
चाँद -सितारों ,
ग्रह - नक्षत्रों से
उलझी जिंदगी अभी और
बितानी है मुझे ....!
सुंदर अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteRECENTPOST- आँसुओं की कीमत.
कबीर ने भी रहा था -
ReplyDelete'जेहि मरने से जग डरे ,सो मेरे आनन्द,
कब मरिहौं कब पाइहौं पूरण परमानन्द..'
ReplyDeleteबढ़िया बिम्ब लिए है रचना।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteन ये कह सकते हैं कि बाकी है जिंदगी अभी .....
ReplyDeleteन ये कह सकते हैं कि बस आ गई है मौत अभी .....
कौन जान सकता है कि मौत की गोद ही है भली ....
करोगे कैसे तय ये कि जिंदगी के बाद बाकी नहीं जिंदगी ? .....
मौत तो, एक पड़ाव मात्र है, आगे की राह पकड़ने का .....
मुक्ति कहाँ है कब है, कोई जाने न ! .....