कोई अपना ,
अनजान सा बन
चुपके से आ
मन के
आंगन में झांक जाये
और
पता भी ना चले
कोई अपना
बन अनजाना सा
बिन आहट
बिन परछाई आ कर चला जाये
ऐसा भी होता है कभी !
मन की गीली मिट्टी
पर पड़े
क़दमों के निशान
उस अनजाने के अपने होने की
गवाही दे ही जाते हैं
अनजान सा बन
चुपके से आ
मन के
आंगन में झांक जाये
और
पता भी ना चले
कोई अपना
बन अनजाना सा
बिन आहट
बिन परछाई आ कर चला जाये
ऐसा भी होता है कभी !
मन की गीली मिट्टी
पर पड़े
क़दमों के निशान
उस अनजाने के अपने होने की
गवाही दे ही जाते हैं
sundar v sarthak rachna hetu badhai
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार आपका।
ReplyDeleteउम्दा रचना ,बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब
ReplyDeleteRECENT POST.......खुशकिस्मत हूँ मैं
:-)
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