सुनो !
कल मैंने तुम्हें
फिर से सपने में देखा
कितने सौम्य
कितने अपने से लगे
चेहरे पर वही चिरपरिचित मुस्कान
जो मैंने देखी थी
पहली बार
जब तुम मुझसे मिले थे
लेकिन
यह सच तो ना था !
केवल सपना ही था
कि तुम
मुझे देख कर मुस्कुराये
सपने की दुनिया से बाहर
तुम कहाँ मुस्कुराते हो
फूला मुख और नाक
टेढ़ी भृकुटियाँ
चेहरे पर परेशानी
और अजनबीपन
कितने पराये से लगते हो
सच क्या है !
समझ से परे है
कि
तुम मेरे अपने सपने वाले हो
कि
सपने के बाहर के !
इस दुनिया के रतजगे से
सपनो की
दुनिया ही बेहतर है
जहाँ तुम मेरे अपने तो होते हो
अपनेपन से भरपूर ....
कल मैंने तुम्हें
फिर से सपने में देखा
कितने सौम्य
कितने अपने से लगे
चेहरे पर वही चिरपरिचित मुस्कान
जो मैंने देखी थी
पहली बार
जब तुम मुझसे मिले थे
लेकिन
यह सच तो ना था !
केवल सपना ही था
कि तुम
मुझे देख कर मुस्कुराये
सपने की दुनिया से बाहर
तुम कहाँ मुस्कुराते हो
फूला मुख और नाक
टेढ़ी भृकुटियाँ
चेहरे पर परेशानी
और अजनबीपन
कितने पराये से लगते हो
सच क्या है !
समझ से परे है
कि
तुम मेरे अपने सपने वाले हो
कि
सपने के बाहर के !
इस दुनिया के रतजगे से
सपनो की
दुनिया ही बेहतर है
जहाँ तुम मेरे अपने तो होते हो
अपनेपन से भरपूर ....
बढिया प्रस्तुति..
ReplyDeleteलाजबाब,बेहतरीन प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
सपनों पे बस नहीं होता ... हकीकत बस में होती है ... इसलिए वो सपनो में मुस्कुराते हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
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