Friday 8 March 2013

क्यूंकि स्त्री मात्र देह ही तो है.......


स्त्री
मात्र देह के सिवा
कुछ भी नहीं

और पुरुष ...!
एक सोच है
एक विचार है ...

यह सोच
यह विचार
स्त्री को घेरता गया ..

स्त्री , पुरुष को
सोचती-विचारती
उसी की
सोच को सोचती
ओढती , बिछाती .
रंग में रंगती ...!

हर उम्र का एक अलग रंग
एक अलग सोच

जाने कितनी
सदियाँ बीत गयी
सोचते -विचरते ..

स्त्री को
 पता ही ना चला
इस मकड़ -जाल ,
सोच-विचार ने कब उसे
घेर लिया ...

सोच - विचार की
ऊँगली पकड़ने ,
हाथ थामते
कभी काँधे का सहारा
ढूंढते -ढूंढते ,
यह देह ना जाने कब
कंधों पर सवार  हो चल
पड़ती है ...

क्यूंकि
स्त्री मात्र देह ही तो है
और पुरुष ही तो
विचार है
और सोच भी ...






16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति आदरेया-
    शुभकामनायें -

    हारा कुल अस्तित्व ही, जीता छद्म विचार |
    वैदेही तक देह कुल, होती रही शिकार |
    होती रही शिकार, प्रपंची पुरुष विकारी |
    चले चाल छल दम्भ, मकड़ जाले में नारी |
    सहनशीलता त्याग, पढाये पुरुष पहारा |
    ठगे नारि को रोज, झूठ का लिए सहारा ||

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  3. स्त्री ...केवल एक सोच है ...हर किसी के लिए

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  4. बहुत खूब उपासना जी ,होती रही शिकार, प्रपंची पुरुष विकारी |
    चले चाल छल दम्भ, मकड़ जाले में नारी |

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. हर जगह क्रोध ही क्यों धारणा बदलें . पुरुष घनी बरगद का छांव भी।
    **तुम राम बनो मैं लखन बन जाऊंगा
    तुम बन चलो मैं पीछे चला आऊंगा **

    हम अपनी भूमिका निर्धारित करें बाकि सब ठीक हो जायेगा .

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  7. सामने आ कर बोले बिना कोई नहीं समझेगा-और शुरू में बोलने पर भी अंकुश लगाने की कोशिशें होंगी !

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  8. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति,आभार.

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  9. ऐसे ही कुछ मेरे भी विचार हैं....
    ~स्त्री.....
    तेरा अस्तित्व.... तेरे सपने...
    सब पर तेरे अपनों का रंग चढ़ जाता...
    तुझे पता भी ना चलता...और...
    उनके सपने... तू अपनी आँखों में सजा लेती...
    अपनी मर्ज़ी से....
    मगर...क्या यही तेरी मर्ज़ी थी...???~
    ~सादर!!!

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  10. stri or purush ke moulik fark ko bakhoobi shabd diye hai aapne..sochne ko majboor karti rachna..

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  11. बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सादर

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

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  13. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena69.blogspot.in/

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  14. उपासना जी आपके विचारों से असहमति पर भावना के साथ सहमति। भावना कवि की है उसे सर-आंखों पर ले रहा हूं पर विचार मानने को तैयार नहीं की स्त्री मात्र देह है। आधुनिक स्त्री ने देह से परे हट कर सोचना कब का शुरू किया है और पुरुषों ने उसकीजगह कब की छोडी है। अगर आप और अन्य महिलाएं मुझे नकार रही है तो गुस्ताखी माफ करिएगा, अब स्त्री को हाथों में हंटर लेकर देह से हट कर स्वाभिमान की लडाई लडनी पडेगी। विस्तार से मेरे ब्लॉग पर 'हद हो गई' पढने का कष्ट करें। कवि की भावनाओं की कद्र करते लिख रहा हूं, यहां आपको ठेंस पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं।

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