मन फिर मचल गया
जरा मुड कर तो
देख कोई है शायद
अभी भी तेरे इंतज़ार में ...
नज़र आया
दूर तक वीराना ही
नज़र आया
दूर तक वीराना ही
कोई तो पुकारेगा
इस वीराने में ...
एक बार फिर
एक बार फिर
से तो मुड कर देख जरा
मन ...
मन ...
अब तू क्यूँ मचलता है
कौन है
जो तेरा इंतज़ार करे ,
जो तेरा इंतज़ार करे ,
तुझे पुकारे .....
तूने ही तो तोड़ डाले थे
सारे तार ,
सारे तार ,
अब कौनसी राह ढूंढता है ...
खिले फूलों
को तूने ही बिखराया था ,
को तूने ही बिखराया था ,
अब किस बहार का इंतज़ार है तुझे ...
अब तू क्यूँ मचलता है
मन
मन
किसको पुकारता है अब
इस वीराने में ........
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. आपको होली की हार्दिक शुभ कामना .
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमन के अस्थिरता का वर्णन करने वाली सार्थक प्रस्तुति है- अब तू क्यूं मचलता है मन। मनुष्य के मन की यहीं विशेषता होती है कि मचले। आपने बडी भावुकता के साथ मन को ही पूछा कि भई बार-बार मचलते क्यों हो? यहीं भावनामयता, अनजानापन, बचपना कविता की ताकत है।
ReplyDeleteअंतर्मन के द्वन्द को शब्द देती भावपूर्ण रचना... आभार
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteकोमल भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteद्वन्द भरी दिल की आवाज -क्या करे क्या ना करे ,सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest post हिन्दू आराध्यों की आलोचना
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वाह बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
दिल क्या करे ...दुविधा में है .........अच्छी रचना .......
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी भाव पूर्ण एवम सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteveerane bhi pukarte hain
ReplyDeletehruday sparshi rachna...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteehsaso sey bhari rachna
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