तेरे शहर में
अजनबी सी खड़ी हूँ
मैं, आज
लिए एक अजनबियत का
अहसास
उन हवाओं में
वो महक अब न रही
जिन हवाओं की महक
लिए एक बार फिर चली
आई हूँ तेरे शहर में
कभी तुम्हारे
साथ गुज़रा करती थी ,
वे गलियां भी अजनबी
सी ही लगी आज मुझे ..
बन अजनबी सी खड़ी हूँ
उसी दरख्त के नीचे...
ये दरख्त गवाह है हमारे
प्रेम का ,
जहाँ हम मिला करते थे
अक्सर ,
आखिरी बार भी यहीं मिले थे
तुम्हारा वादा
हाँ ...!
तुमने तो वादा किया था
तुम्हारा प्रेम कभी कम ना होगा
चाहे मिले या ना मिल पायें कभी ...
यह दरख्त गवाह है
अगर किसी दिन भुला दिया
तुमने , मुझे ..
इसकी पत्तियां पीली पड़ जाएगी
यही वादा था तुम्हारा ..
देखो आज इसी दरख्त के
नीचे खड़ी हूँ ,
इसकी पीली पत्तियां समेटती .......
बहुत उम्दा शानदार अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग,
हार्दिक आभार धीरेन्द्र जी ....
DeleteVah kya khoob khoobshurat ahsas se laberej(please visit on my blog ZINDGI SE MUTHBHED to comment)
ReplyDeleteहार्दिक आभार अज़ीज़ जौनपुरी जी ..
ReplyDeleteकिसी की झूठी कसमें निभाते ... पीली पत्तियों का समेटना ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए ...
हार्दिक धन्यवाद दिगम्बर नसवा जी .....
Deleteअति सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteहार्दिक आभार अमृता जी
Deleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
ReplyDeleteहार्दिक आभार मदन मोहन जी ........
Deleteहार्दिक आभार राविकर जी ........
ReplyDeleteहार्दिक आभार तुषार राज जी ........
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ReplyDeleteयादें बीते दिनों की -बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आप भी मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
latest postअहम् का गुलाम (भाग एक )
latest post होली
हार्दिक आभार आपका ......
Deleteप्रेम और दर्द का अहसास एक साथ ..बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार अंजू ...
Deleteसुंदर लेखन
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनु प्रकाश जी ....
Deleteदर्द टूटे वादों का ...पुरानी यादों का .......सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteकृपया एक नजर इधर भी डालें .मेरे ब्लॉग (स्याही के बूटे) पर ..आपका स्वागत है
http://shikhagupta83.blogspot.in/
हार्दिक आभार शिखा जी ...
Deleteप्रेम और पीड़ा की सुंदर प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
नाजुक से एहसास ... भावमय करती प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति! दिल को छू गयी....
ReplyDelete~सादर!!!