स्त्री ने लिखा
विश्वास
बेटी कहलाई।
स्त्री ने लिखा
स्नेह
बहन कहलाई।
स्त्री ने लिखा
समर्पण
पत्नी कहलाई।
स्त्री ने लिखा
ममता
माँ कहलाई।
स्त्री ने लिखा
प्रेम !
तन गई
भृकुटियाँ,
उठ गई उंगलियाँ कई,
कुलटा कहलाई।
विश्वास
स्नेह
समर्पण
और ममता
प्रेम से इतर तो नहीं
फिर
स्त्री प्रेम में
क्यों कर
कुलटा कहलाई।
विश्वास
बेटी कहलाई।
स्त्री ने लिखा
स्नेह
बहन कहलाई।
स्त्री ने लिखा
समर्पण
पत्नी कहलाई।
स्त्री ने लिखा
ममता
माँ कहलाई।
स्त्री ने लिखा
प्रेम !
तन गई
भृकुटियाँ,
उठ गई उंगलियाँ कई,
कुलटा कहलाई।
विश्वास
स्नेह
समर्पण
और ममता
प्रेम से इतर तो नहीं
फिर
स्त्री प्रेम में
क्यों कर
कुलटा कहलाई।
बहुत सुंदर भावनायें .बेह्तरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteपुरूषों ने युगो से बनाई एकतरफा धारणा जो चली आ रही है उस मानसिकता को बदलने में समय तो लगेगा...
ReplyDeleteचिंतनशील रचना
स्त्री जब कुछ अपने मन का सोचने लगती है तब हर कोई उसका दुश्मन बन जाता है । बहुत गहरे भाव लिए हुए । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआज तक स्त्री पुरुष के बनाये मापदंडो पर ही मापी जाती है ।विचारनिय रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDelete