Friday, 16 October 2015

मछलियाँ और स्त्रियां...

मछलियाँ और स्त्रियां
कितना साम्य है
दोनों ही में !

मछलियाँ पानी में रहती है
और
पानी भरे रहती है आँखों में
स्त्रियां !

बिन पानी छटपटाती है
मछलियाँ
और
आँखों का पानी पोंछ
मुस्कुराती है स्त्रियां।

जाल में फँसा कर
मार दी जाती है मछलियाँ
और
रीत -रिवाज़,मोह - जाल  में फंस
खुद ही
ख़त्म हो जाती है स्त्रियां।

अथाह-विशाल सागर है
मछलियों का घर
तलाशती है फिर भी
एक कोना कहीं।

स्त्रियों को
बना जग-जननी,
सौंप दिया है सारा संसार,
खोजती है फिर भी
अपनी जगह,अपनी जड़ें।




11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-10-2015) को "देवी पूजा की शुरुआत" (चर्चा अंक - 2132) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत शुक्रिया जी

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  2. वाह! अद्भुत बेचारगी भरी साम्य रचना में देखने को मिली। ।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कॉल ड्राप पर मिलेगा हर्जाना - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. वाह ...सही साम्य ...अद्भुत रचना

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  5. Wah....is tarah kabhi socha hi nahi...sundar rachna

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  6. Wah....is tarah kabhi socha hi nahi...sundar rachna

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  7. उम्दा रचना

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  8. बहुत खूब। तरीफ के काबिल रचना की प्रस्‍तुति।

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