Sunday, 30 March 2014

माँ न जाने कैसे भांप लेती है ..


माँ
ना मालूम कैसे,
सब जान जाती है
पेट की जाई का दर्द।

कोने -कोने में
तलाशती है वह
बेटी की खुशियां
बेटी के घर आकर

दीवार पर टंगी
सुन्दर तस्वीरों के पीछे
छुपाई गई
दीवार की  बदसूरत
उखड़ी हुई पपड़ियां
माँ न जाने  कैसे भांप लेती है

बेल -बूटे  कढ़ी हुई
चादर के नीचे
उखड़ी -बिखरी सलवटें
माँ न जाने  कैसे भांप लेती है

हंसती आँखों से
सिसकता दर्द !
मुस्कराते होठों से
ख़ामोश रुदन !
माँ न जाने  कैसे भांप लेती है









7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 01 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर. माँ होती ही ऐसी है

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,धन्यबाद।

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  4. माँ है न इसी लिये । सुन्दर कविता ।

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  5. बेहतरीन व सुंदर रचना , उपासना जी धन्यवाद !
    नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }

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