माँ
ना मालूम कैसे,
सब जान जाती है
पेट की जाई का दर्द।
कोने -कोने में
तलाशती है वह
बेटी की खुशियां
बेटी के घर आकर
दीवार पर टंगी
सुन्दर तस्वीरों के पीछे
छुपाई गई
दीवार की बदसूरत
उखड़ी हुई पपड़ियां
माँ न जाने कैसे भांप लेती है
बेल -बूटे कढ़ी हुई
चादर के नीचे
उखड़ी -बिखरी सलवटें
माँ न जाने कैसे भांप लेती है
हंसती आँखों से
सिसकता दर्द !
मुस्कराते होठों से
ख़ामोश रुदन !
माँ न जाने कैसे भांप लेती है
आपकी लिखी रचना मंगलवार 01 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर. माँ होती ही ऐसी है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteRECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
माँ है न इसी लिये । सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteबेहतरीन व सुंदर रचना , उपासना जी धन्यवाद !
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }
:)
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