Monday, 17 March 2014

मैं यूँ ही अनजाने ख्वाब बुनती रही ...


उसे  तो मुझे 
देखते ही
नफरत हो गयी थी ....


फिर वह किसी 

और से नफरत 
नहीं कर पाया ...

 मैं उसकी नफरत में ही 
प्रेम ढूंढ़ती रही 
बुनती रही 
अनजाने ख्वाब ...

उसकी शिकायतों को 

 भिगोती रही 
आंसुओं में ...
 उसकी नफरत प्रेम में
बदल ही ना सकी 


मैं यूँ ही अनजाने 
ख्वाब बुनती रही 
नफरत में प्रेम  की तलाश
करती रही ...


उपासना सियाग 
( चित्र गूगल से साभार )

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया व सुंदर कृतियाँ , आ० उपासना जी होली की हार्दिक शुभकामनाएँ , धन्यवाद
    नया प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }

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  2. नफ़रत में प्रेम की तलाश
    बहुत सुन्दर और सार्थक

    आज ऐसे ही सोच की ज़रूरत है जो नफ़रत को भी प्रेम में बदल दे।
    सादर

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  3. बहुत सुन्दर सशक्त विचार सरणी

    बहुत सुन्दर सशक्त विचार सरणी शानदार एक तरफ़ा प्रयास घृणा को प्रेम में बदलने का यह जीत है हार नहीं प्रेम की जीत है।

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  4. बढ़िया अभिव्यक्ति !!

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