जब तुम मुझसे जुदा हुए थे
तब मैं उदास मुख और
भरी आँखों से
तुम्हे जाते हुए
ठीक से न देख पाई,
और ना ही मुस्कुरा पाई थी ...
सोचती हूँ लेकिन
अब भी जब तुम मिलोगे
मुझे कभी जब भी
तो मैं
तुम्हें क्या ठीक से देख भी पाउंगी
और मुस्कुरा भी तो कहाँ पाऊँगी
क्यूँ कि
अब तो
लगा है आँखों पर चश्मा
और मुहं में नकली दांत ...
( चित्र गूगल से साभार )
तब मैं उदास मुख और
भरी आँखों से
तुम्हे जाते हुए
ठीक से न देख पाई,
और ना ही मुस्कुरा पाई थी ...
सोचती हूँ लेकिन
अब भी जब तुम मिलोगे
मुझे कभी जब भी
तो मैं
तुम्हें क्या ठीक से देख भी पाउंगी
और मुस्कुरा भी तो कहाँ पाऊँगी
क्यूँ कि
अब तो
लगा है आँखों पर चश्मा
और मुहं में नकली दांत ...
( चित्र गूगल से साभार )
गजब अभिव्यक्ति -
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया-
आँसू से धुंधला गए, वे विछोह परिदृश्य |
जब सुदूर चल ही गए, यादें भी अस्पृश्य ||
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति..!
ReplyDeleteRECENT POST -: कामयाबी.
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
पर पहचान तो दिल से होगी जहां न चश्मा होता है न नकली दांत ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए भाव ...
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 14/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 43 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
आदरणीय , उपासना जी बहुत बढ़िया , कहने को छोटी सी रचना लेकिन बात बड़ी कह गयी , जै हो , धन्यवाद
ReplyDeleteसमय मिले तो एक सूत्र --: श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन ?
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | बधाई आप को
ReplyDeleteआपकी इस रचना के मूल मे जो छुपा हुआ आशावाद है वो काबिले तारीफ है ........ कि अभी भी मिलेंगे कहीं !
ReplyDeleteबहुत बहुत साधुवाद .....