कभी -कभी कुछ नाम
कुछ कमज़ोर दीवारों पर
उकेर कर मिटा दिए जाते हैं
निशान तो फिर भी रह जाते हैं
उन कमज़ोर दीवारों की सतह पर
वक्त गुज़रते - गुज़रते
धुंधलाते कहाँ है वे नाम ...
मिटाये नामों को
उँगलियों से छू कर उकेर दिया जाय
वे उभर आते हैं फिर से
उग आते हैं
कंटीली नागफनियाँ की तरह
कमज़ोर दीवारों की सतहों पर ...
खरोंचते रहते हैं
हृदय की मज़बूत दीवारों को
धीरे -धीरे रिसता लहू
हृदय की दीवारों पर ही लिपटता रहता ,
होठों पर मुस्कान ,हृदय में पीड़ा
बन उभरते रहते हैं वे नाम ...
कुछ कमज़ोर दीवारों पर
उकेर कर मिटा दिए जाते हैं
निशान तो फिर भी रह जाते हैं
उन कमज़ोर दीवारों की सतह पर
वक्त गुज़रते - गुज़रते
धुंधलाते कहाँ है वे नाम ...
मिटाये नामों को
उँगलियों से छू कर उकेर दिया जाय
वे उभर आते हैं फिर से
उग आते हैं
कंटीली नागफनियाँ की तरह
कमज़ोर दीवारों की सतहों पर ...
खरोंचते रहते हैं
हृदय की मज़बूत दीवारों को
धीरे -धीरे रिसता लहू
हृदय की दीवारों पर ही लिपटता रहता ,
होठों पर मुस्कान ,हृदय में पीड़ा
बन उभरते रहते हैं वे नाम ...
nice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों का संचार करती प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर भावों का सममिश्रण ....सुंदर रचना ...
ReplyDeleteकोमल भावनाओं कि भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut hi komal evam khoobsoorat abhivyakti..
ReplyDeleteकोमल भावों कि सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनई पोस्ट तुम
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteheart touching lines
ReplyDeletebahut acha likha hai
ReplyDeletevery nice and touching
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर चौपाल पर आपकी रचना को शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत भावपूर्ण रचना...
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