जिस दिन से तुमने
राह बदल दी
उस दिन से मैंने
मंजिल की
चाह छोड़ दी ...
चाह छोड़ी है बस
मंजिल की ही
तुम्हारे साथ की नहीं छोड़ी
चाह मैंने कभी ...
बैठी हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे गुनगुनाने की
और
मेरे मुस्कुराने की ...
जिस दिन से तुमने
गुनगुनाना
छोड़ दिया
उस दिन से मैंने
मुस्कुराना
छोड़ दिया ....
दीवारों को निहारती हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे अक्स के उभर
आने की ..
जिस दिन से
तुमने मुहँ फेर लिया
मैंने आईना
देखना छोड़ दिया ...
राह बदल दी
उस दिन से मैंने
मंजिल की
चाह छोड़ दी ...
चाह छोड़ी है बस
मंजिल की ही
तुम्हारे साथ की नहीं छोड़ी
चाह मैंने कभी ...
बैठी हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे गुनगुनाने की
और
मेरे मुस्कुराने की ...
जिस दिन से तुमने
गुनगुनाना
छोड़ दिया
उस दिन से मैंने
मुस्कुराना
छोड़ दिया ....
दीवारों को निहारती हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे अक्स के उभर
आने की ..
जिस दिन से
तुमने मुहँ फेर लिया
मैंने आईना
देखना छोड़ दिया ...
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया-
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteकोमल भाव लिए रचना...
:-)
बहुत कोमल भावनाओं कि सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
ReplyDeleteजिस दिन से तुमने
राह बदल दी
उस दिन से मैंने
मंजिल की
चाह छोड़ दी ...
बुधवार 02/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
सुंदर भाव, शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteस्थान, स्थिति और समय को कब इतनी शक्ति मिली है की सच्चे जुड़ाव को कमजोर कर दे . सुन्दर रचना.
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली रचना उपासना सखी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को
ReplyDeleteभाव पूर्ण सुन्दर ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव के साथ अच्छी रचना उपासना जी, हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ,उपासना जी .
ReplyDeleteनई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और कमल
नई पोस्ट : पुरानी डायरी के फटे पन्ने
सुन्दर प्रस्तुति ..जज्बातों से लबरेज ... बधाई एवं शुभकामनाये :)
ReplyDeleteअच्छी है लेकिन आपकी अन्य रचनाओं की तुलना में थोडा क्षीण प्रभाव छोडती है, शब्दों का दुहराव खटकता है। क्षमाप्रार्थी हूँ लेकिन मन ने नहीं माना, सो बता दिया।
ReplyDeleteअच्छी है लेकिन आपकी अन्य रचनाओं की तुलना में थोडा क्षीण प्रभाव छोडती है, शब्दों का दुहराव खटकता है। क्षमाप्रार्थी हूँ लेकिन मन ने नहीं माना, सो बता दिया।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति उपासना जी |
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