Saturday 6 October 2012

मन तो मन ही है ......


मन तो मन ही है 
ना जाने कब ,
किस जहाँ की ओर उड़ चले ....
लेकिन ,
जब - जब मन ने उड़ान 
भर कर 
घर की देहरी पार करनी चाही
तो ना जाने कितने रेशमी 
तार क़दमों में आ कर 
उलझा दिए गए ,
इन रेशमी तारों की उलझन
 सुलझाने 
और गाँठ  लगने से बचाने में ही 
जीवन कट गया ,
भले ही कभी उंगलिया लहू -लुहान 
ही क्यूँ ना हो गयी हो ...
लेकिन , 
फिर भी , 
इस मन ने उड़ान भरनी तो नहीं 
छोड़ी ,
आज ये मन एक बार फिर 
चाँद को छूने को चल 
पड़ा है ....
देखें अब कौन रोकता है मन को 
उड़ान भरने से .....

8 comments:

  1. मन तो मन है ...उड़ान को मन ही रोक पाएगा ... खूबसूरत रचना

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  2. मन होता ही चंचल है उपासना जी , बेहतरीन भाव सुन्दर रचना

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  3. जहाँ चाह वहाँ राह..सुन्दर रचना..

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  4. मन अपना होता है,आंसुओं से सराबोर भी उड़ता है

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  5. मन बड़ा बावरा है . तब ही तो कभी बेदी बाँध लेता है तो कभी आसमान नापने की जुगत भिड़ाता है

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  6. दिलमें यदि तुम ठान लो,अच्छी रक्खो चाह
    रोक न पाय कोई भी,मिल जाती है राह,,,,,,

    RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,

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  7. बहुत सुन्दर.....मन के मत पर मत चलियो ये जीते जी मरवा देगा ।

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  8. Are wah..mere man ko to bht hi achi lagi yah. Mera man b na jane kitni kulaache bharta h..abhi yaha to abhi waha. :)

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