औरत सदा
अकेली ही रहती है
कौन साथ देता है उसका !
कोई भी नहीं।
अकेली ही रहती है
कौन साथ देता है उसका !
कोई भी नहीं।
अपनी मंज़िल के लिए
बढाती है वह खुद
अपना पहला कदम ,
सहारा बनने के लिए
कौन साथ देता है उसका !
कोई भी नहीं।
अपना पथ
स्वयं ही बुहारती -सवांरती ,
पथ के कांटे भी
अपना पथ
स्वयं ही बुहारती -सवांरती ,
पथ के कांटे भी
खुद ही निकालती है।
लेकिन
जाने -अनजाने में
अपने पीछे ही फैंक देती है वह ,
वे पथ के कांटे।
उसे चुभन का
अहसास ही नहीं हुआ
कभी शायद।
तभी तो
उसके बाद
आने वाली औरतों को
विरासत में
कांटे ही मिलते है बुहारने को।
एक औरत ,
दूसरी औरत को
फिर से अकेला छोड़ देती है ,
अपनी राह खुद ही चलने को।
दिल को छूते गहन अहसास...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हाँ ,स्त्रियों को एक दूसरी का सहारा नहीं मिल पाता .
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