Monday, 10 November 2014

अस्थियों के विसर्जन के मायने ही कहाँ रहे....

अस्थियों के
विसर्जन के साथ ही
कर दिया तर्पण
सम्बन्धों का भी....
बह गए सभी
रिश्ते ,
खत्म हुए सभी नाते....
तन के रिश्ते तन
तक ही थे शायद.
फिर
मन के विलाप का क्या
कुछ दिनों का रोना है....
मन से जुड़े रिश्तों का ,
तन से जुड़ी यादों का नाता
अस्थि यों के होने तक ही था क्या....
अस्थियां जब तक
अस्थि मज्जा से जुड़ी थी,
मजबूत ढाँचे में कसी थी
क्या तभी तक रिश्ते रहे ....
नहीं !
मन के रिश्ते ,
मन से ही जुड़े रहेे ।
फिर
अस्थियों के विसर्जन के
मायने ही कहाँ रहे....

2 comments:

  1. मन के रिश्ते ,
    मन से ही जुड़े रहेे ।
    फिर
    अस्थियों के विसर्जन के
    मायने ही कहाँ रहे....
    ..सही कहा आपने ..गंभीर विचारणीय प्रस्तुति

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  2. विचारणीय सार्थक प्रस्तुति

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