उदासियों की चादर
बहुत बड़ी है
बहुत मोटी ,
खद्दर जैसी है।
या
खुरदरी सी
जैसे जूट हो।
कहीं कोई छेद नहीं ,
झिर्री भी तो नहीं है।
कि कहीं से
उधेड़ देने की कोशिश तो की जाय।
कहीं कोई गरमाइश भी नहीं
कि
ओढ़ कर सुकून सा मिले।
उदासियों की चादर के आगे
खुशियों की चादर
कितनी छोटी है।
उधड़ी हुई सी ,
जगह-जगह झिर्रियां सी है।
छोटे -बड़े कई छेद हैं
उन पर भी पैबंद लगा है।
फिर भी
इस झिर्रीदार ,
पैबन्दों से बिंधी
छोटी ही सही ,
खुशियों की चादर
कितना गरमाइश भरा सुकून है।
बहुत बड़ी है
बहुत मोटी ,
खद्दर जैसी है।
या
खुरदरी सी
जैसे जूट हो।
कहीं कोई छेद नहीं ,
झिर्री भी तो नहीं है।
कि कहीं से
उधेड़ देने की कोशिश तो की जाय।
कहीं कोई गरमाइश भी नहीं
कि
ओढ़ कर सुकून सा मिले।
उदासियों की चादर के आगे
खुशियों की चादर
कितनी छोटी है।
उधड़ी हुई सी ,
जगह-जगह झिर्रियां सी है।
छोटे -बड़े कई छेद हैं
उन पर भी पैबंद लगा है।
फिर भी
इस झिर्रीदार ,
पैबन्दों से बिंधी
छोटी ही सही ,
खुशियों की चादर
कितना गरमाइश भरा सुकून है।
खुशियाँ तो खुशियाँ ही होती है। चाहे बड़ी हों या छोटी-छोटी...
ReplyDeleteखुशियों की चादर भले ही छोटी हो उसमें सबको समेट लेने की रूहानी ताकत होती है ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteखुशियाँ छोटी हो या बड़ी दिल को सकूं देती है
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए शुभकामनायें !
ReplyDeleteफिर भी, ---
रंगा जा सकता है ....
उदासियों के तार से बुनी चादर को भी ....
किसी रंग मे ....
डुबो के खुशियों के रस मे ! ....
जाना पहचाना अंजाना जी ?
Deleteखूब पहचाना जी ! .... :-)
Deleteबहुत शुक्रिया जी...... :))
Deleteसुन्दर रचना के लिए बधाई !
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ReplyDeleteबहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं...
बहुत खूब ... जीवित शब्द ...
ReplyDeleteसच कहा आप ने उपासना जी
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति ............मेरे दिल को छू गया!
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