Monday, 24 November 2014

खुशियों की चादर कितनी छोटी है....

उदासियों की चादर
बहुत बड़ी है
बहुत मोटी ,
खद्दर जैसी है।
या
खुरदरी सी
जैसे जूट हो।

कहीं  कोई छेद नहीं ,
झिर्री भी तो नहीं है।

कि कहीं से
उधेड़ देने की कोशिश तो की जाय।

कहीं कोई गरमाइश भी नहीं
कि
ओढ़ कर सुकून सा मिले।

उदासियों की चादर के आगे
खुशियों की चादर
कितनी छोटी है।

उधड़ी हुई सी ,
जगह-जगह झिर्रियां सी है।
छोटे -बड़े कई छेद हैं
उन पर भी पैबंद लगा है।

फिर भी
इस झिर्रीदार ,
पैबन्दों  से बिंधी
छोटी ही सही ,
खुशियों की चादर
कितना गरमाइश भरा सुकून है। 








12 comments:

  1. खुशियाँ तो खुशियाँ ही होती है। चाहे बड़ी हों या छोटी-छोटी...

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  2. खुशियों की चादर भले ही छोटी हो उसमें सबको समेट लेने की रूहानी ताकत होती है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  3. खुशियाँ छोटी हो या बड़ी दिल को सकूं देती है

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  4. सुंदर रचना के लिए शुभकामनायें !

    फिर भी, ---

    रंगा जा सकता है ....
    उदासियों के तार से बुनी चादर को भी ....
    किसी रंग मे ....
    डुबो के खुशियों के रस मे ! ....

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    1. जाना पहचाना अंजाना जी ?

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    2. खूब पहचाना जी ! .... :-)

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    3. बहुत शुक्रिया जी...... :))

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  5. बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं...

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  6. बहुत खूब ... जीवित शब्द ...

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  7. सच कहा आप ने उपासना जी

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  8. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ............मेरे दिल को छू गया!

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