Sunday, 5 January 2014

ये जीवन जैसे कोई किराये का घर हो

ये  जीवन
जैसे कोई
किराये का घर हो
हर एक सांस पर
हर एक कदम पर
हर एक मंजिल पर
किराया ही तो भरना होता है ..


माना कि
ये जीवन
किराये का ही घर है
फिर भी
मोह -माया से
मन जकड़ा जाता है
हर एक दीवार से प्रेम
होता जाता है

सुरक्षा का अहसास देती है
ये दीवारें
हर छत जैसे
पल -पल जीने का
हौसला सा देती....

माना कि
एक दिन अपने घर
जाना ही होगा
मोह-माया को परे कर
 ये किराये का घर छोड़ कर

फिर भी
संवेदनाओं और भावनाओं
का किराया लेता
ये घर भी  बहुत प्यारा
लगता है ...






9 comments:

  1. aap aisa kyon sochaty hai....ye jivan pyar ke ghar bhi to ho sakata hai....

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  2. भावनाओं से भरी ... मोहक रचना ...

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  4. aap kaa kahna bilkul thika hai.

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  5. बहुत सुंदर भावनापूर्ण प्रस्तुति...!
    RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.

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  6. bhavnaye rachna ke rup me behatrin ubharkar aayi.............

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  7. बिल्कुल सच..बहुत भावमयी रचना...

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