Friday, 31 January 2014

आत्मा से बंधे रिश्ते


कुछ रिश्ते
जो तन के होते हैं
केवल
तन से ही जुड़े होते हैं
वे मन से कहाँ जुड़ पाते हैं

तभी तक  साथ होते हैं वे
जब तक जुडी हैं मांसपेशियां
अस्थियों से
या फिर
अस्थि-मज्ज़ा में रक्त बनता है
 तब तक ही शायद

यहाँ
हृदय धड़कता भी है तो
 केवल
रक्त प्रवाहित करने के लिए
 धड़कन से
जीवन चलता है
रक्त वाहिनियों को सजीवित करता हुआ

तन के रिश्ते

गँगा में बहा दिए जाते है
एक दिन अस्थियों के साथ ही
और आत्मा  आज़ाद हो जाती है
एक अनचाहे पिंजरे से
और  अनचाहे रिश्तों से भी


आत्मा से बंधे रिश्ते
 तन के बंधनो में नहीं बंधते ,
बन कर रिश्ते नहीं रिसते
पल-पल रक्त वाहिनियों में ही कभी ,
 निराकार आत्मा
बिन अस्थियों  ,
मांसपेशियों के ही जुड़ी रहती है,
विलीन हो जाती है
एक दूसरी आत्मा में
जहाँ पिंजरे की  नहीं होती जरूरत
ना ही अनचाहे रिश्तों की ही





Friday, 24 January 2014

यह ईश्वर का प्रेम है या श्राप !

ईश्वर की सबसे
खूबसूरत कृति है
इंसान
ऐसा ही कहा जाता है

ना केवल खूबसूरत
बल्कि
प्रेम भी अधिक है उसे
इंसान से
यह भी माना  जाता है या भ्रम मात्र ही है

प्रेम है  या नहीं है
या
शायद  उसे प्रेम ही है
इंसान से ,
तभी तो हृदय बनाया उसने ,
उसमें !

हृदय बना कर
ईश्वर ने
कभी न पूरी होने वाली
आशाएं -उम्मीदें जगाई
अपनों को अपना समझने का भरम भी जगाया
ये कैसा प्रेम है ईश्वर का

कभी लगता है
यह ईश्वर का
प्रेम है या श्राप !
कैसे उलझन में उलझाये रखता है

इंसान धरा पर यूँ ही
घूमता है शापित सा
ह्रदय में ईश्वर का प्रेम लिए
और चेहरे पर संताप  .... !





Tuesday, 7 January 2014

और उड़ना भी नहीं सिखाया ..

माँ ने
अपनी नन्ही सी
बिटिया को
चिड़िया भी कहा
और
उड़ना भी नहीं सिखाया..

माँ ने
अपनी दुलारी सी
बिटिया को
खिड़की से झांकता
सीमित आसमान भी
दिखाया
उड़ने की  चाह को
अनदेखा किया..

यह क्या माँ !
तुमने आसमान
दिखाया
उसमे चमकता चाँद भी
 दिखाया
लेकिन अपनी चिड़िया के
पंख ही काट डाले...



Sunday, 5 January 2014

ये जीवन जैसे कोई किराये का घर हो

ये  जीवन
जैसे कोई
किराये का घर हो
हर एक सांस पर
हर एक कदम पर
हर एक मंजिल पर
किराया ही तो भरना होता है ..


माना कि
ये जीवन
किराये का ही घर है
फिर भी
मोह -माया से
मन जकड़ा जाता है
हर एक दीवार से प्रेम
होता जाता है

सुरक्षा का अहसास देती है
ये दीवारें
हर छत जैसे
पल -पल जीने का
हौसला सा देती....

माना कि
एक दिन अपने घर
जाना ही होगा
मोह-माया को परे कर
 ये किराये का घर छोड़ कर

फिर भी
संवेदनाओं और भावनाओं
का किराया लेता
ये घर भी  बहुत प्यारा
लगता है ...






Wednesday, 1 January 2014

समय के कलेंडर पर जो तारीख ठहर जाती है ..

कुछ घंटे
कुछ  प्रहर
कुछ दिन
और
दिनों से मिल कर
 बने महीने

महीनों ने मिल कर
साल बनाया
कितने साल गुज़रे
कितने कलेण्डर बदले
ऐसे ही जीवन बीता जाता है

कलेण्डर बदलते हैं
तारीखें भी बदल जाती है
लेकिन जब कभी
समय के कलेंडर पर
कोई  तारीख ठहर जाती है
वह 'तारीख़ ' बन जाती है