अक्सर
कुछ आहटें
एक पदचाप सी
पीछा करती है मेरा
एक साया सा
रहता है मेरे साथ
लिपटी रहती है एक महक
एक नम स्पर्श की
नहीं जानती मैं
यह सच है या भ्रम
लेकिन
यह मुझे यकीन तो है
कुछ आहटें मेरे पीछे चला
करती है
ये आहटें जानी पहचानी सी ,
होती है कुछ अपनी सी
लेकिन
साहस नहीं होता
मुड़ कर देखने का
भय आता है
भ्रम टूटने का
नहीं देख सकती मुड़ कर
जीती रहती हूँ
बस इसी भ्रम में कि
ये आहटें मेरी जानी पहचानी है
नहीं मालूम मुझे
सच में जानी पहचानी भी है या
भ्रम ही है मेरा
कुछ आहटें
एक पदचाप सी
पीछा करती है मेरा
एक साया सा
रहता है मेरे साथ
लिपटी रहती है एक महक
एक नम स्पर्श की
नहीं जानती मैं
यह सच है या भ्रम
लेकिन
यह मुझे यकीन तो है
कुछ आहटें मेरे पीछे चला
करती है
ये आहटें जानी पहचानी सी ,
होती है कुछ अपनी सी
लेकिन
साहस नहीं होता
मुड़ कर देखने का
भय आता है
भ्रम टूटने का
नहीं देख सकती मुड़ कर
जीती रहती हूँ
बस इसी भ्रम में कि
ये आहटें मेरी जानी पहचानी है
नहीं मालूम मुझे
सच में जानी पहचानी भी है या
भ्रम ही है मेरा
too gud
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज वृहस्पतिवार (22-06-2013) के "संक्षिप्त चर्चा - श्राप काव्य चोरों को" (चर्चा मंचः अंक-1345)
पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर आदरेया-
ReplyDeleteकभी कभी हम जानबूझकर भ्रम तोड़ना नहीं चाहते
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
साभार !
सुंदर अभिव्यक्ति : ?
ReplyDeleteबात मिलने-मिलाने की मत छेडिये, अब छोडिये
ReplyDeleteहम खुश है ख्वाबो-ख़्वाब में यह भ्रम न तोडिये |
बहुत बढिया...सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteनहीं ये भ्रम नहीं !
ये वास्तविकता है।
मैं और मेरी परछाई
अक्सर बातें करते हैं,
मेरी तन्हाई का
सबसे बड़ा साथी है।
मैं और मेरी परछाई……