मायके से विदाई की बेला
मन और आँखों
का एक साथ भरना ,
एक -एक करके बिखरा सामान
सहेजना ...
बिखरे सामान को सहेजते हुए
हर जगह- हर एक कोने में
अपना एक वजूद भी
नज़र आया,
जो बरसों उस घर में जिया था ...
कुछ खिलौने ,
कुछ पेन -पेंसिलें ,
कुछ डायरियां
और वो दुपट्टा भी
जो माँ ने पहली बार
सँभालने को दिया था ...
माँ की कुछ नसीहते
तो पापा की
सख्त हिदायतें भी
नजर आयी ….
टांड पर उचक कर देखा
तो एक ऊन का छोटा सा गोला
लुढक आया
साथ में दो सींख से बनी
सिलाइयां भी ,
जिस पर कुछ बुना हुआ था
एक नन्हा ख्वाब जैसा ,
उलटे पर उलटा और
सीधे पर सीधा...
अब तो जिन्दगी की
उधेड़-बुन में
उलटे पर सीधा और
सीधे पर उल्टा ही
बुना जाता है ...
कुछ देर बिखरे
वजूद को समेटने की
कोशिश में ऐसे ही खड़ी रही
पर कुछ भी समेट ना सकी
दो बूंदें आँखों से ढलक पड़ी ...
बहुत खूब ..मायका जाना जितना सुखद होता हैं उतना ही दर्द भी मिलता हैं पुरानी यादो का अपनों से दूर हो जाने का .......
ReplyDeletebahut hi sunder bahut hi umda ..didi ji
ReplyDeleteWAAH BAHUT KHOOBSURAT ABHIVYAKTI
ReplyDeleteWAAH BAHUT KHOOBSURAT ABHIVYAKTI
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [12.08.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1335 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत ही सुंदर उम्दा पोस्ट ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : जिन्दगी.
बहुत कुछ लहरा गया यादों में .......
ReplyDeletebahut kuch yaad aa gaya padh kar...man ko chute bhav
ReplyDeleteमाय्की की यादें जहां सुकून देती हैं... वहीं वर्तमान का कोहरा भटकाव लाता है ... जिससे उभारना मुशकि हो जाता है ...
ReplyDeleteएक संपूर्ण अध्याय होता है मायके का जीवन ,फिर कथानक का दूसरा भाग चल पड़ता है .
ReplyDeleteमायका की याद एक अविस्मरनीय धरोहर है इसे कोई लड़की भूलना नहीं चाहती है
ReplyDeletelatest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
यही होता है बीत जाने पर हम कुछ भी समेट नहीं पाते बस रीता रह जाता है
ReplyDeleteवाह...बहुत ही उम्दा पोस्ट
ReplyDeleteविदाई की बेला में बीते वर्षों के सब पल समेटना बहुत मुश्किल होता है...
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....
ReplyDeletewell written.
ReplyDeleteVinnie,