Friday 31 August 2012

ए जिन्दगी

जिन्दगी ...!
आ अब मैं तुम्हे हारना
चाहती हूँ 
तुमसे जीतना मुझे अब 
नामुमकिन 
ही लगता है ...
कभी तुम्हे बुलाया तो
चुप रहने को
कहती हो ,
चुप भी रहूँ तो ढेरों सवाल
लिए आ खड़ी होती हो...
अब बस तुझे बहुत
जी लिया ,
अब तुम्ह्ने हारना
ही चाहती हूँ ...
तुम्हारे आगे - पीछे ,
बहुत घूम लिया मैंने ,
बस अब तुमसे दामन छुड़ाने
को मन करता है ...
कभी मृगतृष्णा सी तुम
और कभी
तुम कस्तूरी की तरह हो
अब मैं तुम्हें तलाशते हुए 
और नहीं खोना चाहती 
तुम्हे हारना ही चाहती हूँ ...
तुम्हारे कोई भी रंग
अब मुझे,
अपनी और नहीं बुलाते ,
अब मैं काले रंग को
ओढ़ कर ही ,
तुम्हारे धुएं में गुम
हो जाना चाहती हूँ ...
ए जिन्दगी !
अब मैं तुम्हे
हारना ही चाहती हूँ...

8 comments:

  1. जिंदगी तुझसे बहुत प्यार है,
    कितना हंसी तेरा ये साथ है !
    मगर तेरे तो दुनिया में रंग हजार,
    जी चाहता है हर रंग से करू प्यार !
    मन में होता है न जाने क्यों अहसास,
    कम दिनों का बचा है तेरा-मेरा साथ !
    मगर तेरे साथ कुछ दिन और जीना चाहता हूँ ,
    जीवन की अच्छाइयों को परखना चाहता हूँ !
    सोचता हूँ, काश कुछ ऐसा हो जाये,
    मै तेरी तू मेरी बाहों में समाँ जाये !
    कुछ पल के ही लिए मै तेरे सारे रंग समेट लूँ ,
    जिन्दगी हर रंग को बहुत करीब से देख लूँ !
    dheerendra,bhadauriya,,,,,,

    RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

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  2. उपासना जी बहुत ही सुन्दर रचना

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  3. man ke bhao ko vykt karati..
    sanvedanshil rachana...

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  4. बहुत सुन्दर भाव उपासना जी

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  5. जिंदगी से कौन जीत पाया है आज तक ... अंततः जीतने के प्रयास में जीवन भी खत्म हो जाता है ...

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  6. अब मैं काले रंग को
    ओढ़ कर ही ,
    .तुम्हारे धुएं में गुम
    हो जाना चाहती हूँ .....
    ए जिन्दगी अब मैं तुम्हे
    हारना ही चाहती हूँ..

    बहुत सुन्दर

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