किसी ने कहा
कुछ ऐसा लिखो
कुछ ऐसा लिखो
जिसे पढ़ चेतना जाग जाये
सोई हुई आवाम की
सोई हुई आवाम की
सोच में पड़ गई मैं
आवाम के लिए लिखूं !
जागी हुई आवाम के लिए !
चेता करती है जो
सिर्फ बम के धमाकों से
आवाम के लिए लिखूं !
जागी हुई आवाम के लिए !
चेता करती है जो
सिर्फ बम के धमाकों से
या किसी मसीहा के आव्हान पर ही !
और सो जाती है
फिर से किसी मसीहा के इंतज़ार में।
फिर से किसी मसीहा के इंतज़ार में।
ऐसी सोयी हुई
जनता को जगाने के
कविता की नहीं,
अलख की जरुरत है !
अलख की जरुरत है !
किसी ने फिर टोका
चलो नारी के लिए ही लिखो !
लेकिन किस नारी के लिए
जो डूबी हुई है
दुनियां की चकाचौंध में
क्या लिख कर जगाऊं
उसे जो
चलो नारी के लिए ही लिखो !
लेकिन किस नारी के लिए
जो डूबी हुई है
दुनियां की चकाचौंध में
क्या लिख कर जगाऊं
उसे जो
अपने ही जाल में उलझती जाती है
हर रोज़ !
हर रोज़ !
ऐसी सोयी हुई नारी को
झिंझोड़ कर - झखझोर कर ,
अपने हाथों से जगाना चाहती हूँ,
झिंझोड़ कर - झखझोर कर ,
अपने हाथों से जगाना चाहती हूँ,
लिख कर नहीं !
अब क्या लिखूं ,
किसके लिए लिखूं !
जय जय श्री राम !!!!!!अति सुन्दर .....
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी ...
DeleteBahut Sunder...Sada ki tareh...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया sakhi..........
Deletefier jaag gye hum Upasna........... kintu shaayad shan bhar ke liye jaisa ke aap toh jaante ho :(
ReplyDeletebehad achcha likha hai aapne.
Nice poem !
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