Saturday, 17 March 2012

प्रिय

प्रिय तुम कितने प्रिय हो 
अब तुम्हे क्या और 
क्यूँ बताऊँ .........
मैं तो बस तुम्हारी मंद मुस्कान 
में ही खोयी रहती हूँ ...........
मुझे तुम्हारा प्यार सागर की 
गहराई में भी नज़र नहीं आता ,
पर्वतों जैसा ऊँचा भी नहीं नज़र आता ,
मुझे नज़र आता है तुम्हारी आँखों की 
चमक में जो मुझे देख बढ़ जाती है ,
और ठुड्डी पर पड़ने वाले गड्ढे 
में जो मुझे देख और गहरा होता 
जाता है ............
मुझे तुम ना राम जैसे और ना ही
श्याम जैसे लगते हो ............
मुझे तुम शिव जैसे लगते हो ,
जिसने अपनी प्रिय के लिए 
सारे जग में तांडव ही मचा दिया था ....
प्रिय अब मैं तुम्हे क्या बताऊँ कि
तुम कितने प्रिय हो ..........!


6 comments:

  1. अति प्रिय शब्दो से मीठी सी लगती इस रचना के लिए बहुत आभार ....शायद ऐसे शब्द एक प्रिय के पास ही होंगे अपने प्रिय के लिए ।

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  2. बेहतरीन।

    सादर

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  3. बहुत प्‍यारा है ये प्‍यार अपने प्रिय के लिये... बेहद मासूम और परिपक्‍व भी...

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  4. बहुत खूब लिखा है सखी....प्रिय के लिए ......गरिमामय अभिवयक्ति

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  5. बहुत सुंदर प्रेममयी अभिव्यक्ति...

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