Sunday, 29 November 2015

चलो तुम ही मन्नत की दुआ मांगो..

तुम ने मन्नत मांगी है
दूर जाने की मुझ से,
भूल जाने की मुझे।

एक मन्नत मेरी भी है
याद में ,
दिल में सदा
पास रखने की तुमको।

मन्नतें सदा
सच्ची ही होती हैं
क्यूंकि
मांगी जाती है दिल से।

मुश्किल में होगा
मन्नत पूरी करने वाला भी,
किसकी सुने और
न भी क्यों ना सुने।

चलो तुम ही
मन्नत की दुआ मांगो।
मेरी तो बिन मांगे ही
पूरी होती है मन्नतें।








9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगवार (01-12-2015) को "वाणी का संधान" (चर्चा अंक-2177) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब । मन्नतों का भी अलग ही सिलसिला है ।

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  3. बहुत खूब । मन्नतों का भी अलग ही सिलसिला है ।

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  4. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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  5. जो दिल से बस गया उसके लिए क्या मन्नत।।
    बहुत सुन्दर

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  6. बहुत सुन्दर रचना है|

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  7. वाह ... गज़ब के ख्यालात को शब्द दिए हैं ...

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