जीवन की
सांध्य बेला में
माँ हो गई है
शरीर से कुछ कमजोर
और याददाश्त से भी।
उसे नहीं रहता अब
कुछ भी याद ,
तभी तो
शरारतें।
माँ को कहाँ
याद रहता है अपने बच्चों की
गलतियाँ।
लेकिन उसे याद है
मेरी सारी
पसन्द -नापसन्द ,
नहीं भूली वह मेरे लिए
मेरा पसंदीदा खाना पकाना।
समय के साथ
कमज़ोर पड़ी है नज़र
लेकिन
बना देती है स्वेटर अब भी।
हाँ स्वेटर !
जिसे बनाने में कुछ ही दिन
लगाती थी वह ,
अब कुछ साल लग गए।
अनमोल धरोहर सी है
मेरे लिए वह स्वेटर।
माँ कमजोर तो हो गई है ,
लेकिन अब भी
मेरे आने की खबर पर
धूप में भी मेरे इंतज़ार में
खड़ी रहती है दरवाज़े पर ।
मैं भी एक माँ ही हूँ
लेकिन नहीं हूँ
अपनी माँ सी प्यारी -भोली सी
और क्षमाशील।
सोचती हूँ
संसार की कोई भी माँ
नहीं होती है
अपनी माँ से बेहतर।
सांध्य बेला में
माँ हो गई है
शरीर से कुछ कमजोर
और याददाश्त से भी।
उसे नहीं रहता अब
कुछ भी याद ,
तभी तो
वह भूल गई
मेरी सारी गलतियां ,शरारतें।
माँ को कहाँ
याद रहता है अपने बच्चों की
गलतियाँ।
लेकिन उसे याद है
मेरी सारी
पसन्द -नापसन्द ,
नहीं भूली वह मेरे लिए
मेरा पसंदीदा खाना पकाना।
समय के साथ
कमज़ोर पड़ी है नज़र
लेकिन
बना देती है स्वेटर अब भी।
हाँ स्वेटर !
जिसे बनाने में कुछ ही दिन
लगाती थी वह ,
अब कुछ साल लग गए।
अनमोल धरोहर सी है
मेरे लिए वह स्वेटर।
माँ कमजोर तो हो गई है ,
लेकिन अब भी
मेरे आने की खबर पर
धूप में भी मेरे इंतज़ार में
खड़ी रहती है दरवाज़े पर ।
मैं भी एक माँ ही हूँ
लेकिन नहीं हूँ
अपनी माँ सी प्यारी -भोली सी
और क्षमाशील।
सोचती हूँ
संसार की कोई भी माँ
नहीं होती है
अपनी माँ से बेहतर।
maa kabhi bhi nhii bhulti bachchon ko .... bhavpurn abhivaykti
ReplyDeleteमां जिसकी कोई भी उप- मा नही है
ReplyDeleteसत्य