Saturday, 23 February 2013

धमाकों की दहशत


    • धमाकों की दहशत से मची
      अफरातफरी .....
      कोई गिरा ,
      कोई गिर कर उठा ,
      लडखडाता हुआ
      फिर से चल पड़ा
      और कोई दुनिया से ही उठ
      गया ....

      हर कोई दूर बैठे किसी
      अपने के लिए
      फिक्रमंद था....

      किसी ने कविता लिखी ,
      किसी ने नेताओं को ,
      तो किसी ने भ्रष्टाचार को ही
      कोस डाला .....

      किसी ने कहा इस देश का
      कुछ नहीं हो सकता ....

      किसी ने टीवी चेनल
      पर मरने वालों का स्कोर
      देख ,
      कुछ सच्ची ,
      कुछ अनमनी सी
      आह भर कर चेनल बदल
      दिया .....

      चलो कोई मूवी ही
      देख ले ....
      ऐसा तो यहाँ
      होता ही रहता है ....

      धमाकों के शोर से
      जागी -उनींदी
      जनता फिर से सो गयी
      शायद और बड़े धमाके के इंतज़ार में....

9 comments:

  1. बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  2. दुखद घटना पर अच्छे विचार :(

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  3. जिंदगी तो चलती रहती है लेकिन इस तरह के हादसे दर्द दे जाते हैं ..........

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  4. अब तो धमाके भी रोज़मर्रा की घटना हो गए हैं ... अच्छी प्रस्तुति

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  5. दर्द को बहुत ही सटीक शब्दों में अभिव्यक्त किया है....

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  6. बहुत ही मार्मिक

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