Thursday 19 April 2012

कुछ पल

कुछ पल  जो मिटटी में
दबा दिए थे मैंने ,
वो  अब  गुलाब बन कर
खिलखिलाने लगे हैं ...
कुछ पल जो  अपने आंचल में
बांध लिए थे मैंने,
वो अब कुछ सितारे बन
झिलमिलाने लगे हैं ...
कुछ पल जो अलगनी पर
 टांग दिए थे मैंने ,
वो अब मेरा घर -आँगन
महकाने लगे हैं ...

4 comments:

  1. वाह...बहुत बढ़िया प्रस्तुति,खुशी की सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

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  2. बहुत बढ़िया

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