जाने वाले ने तो कहा था
नहीं रुक पायेगा
उसे अब जाना ही होगा..
अब अगर रुक गया
जा नहीं पाएगा
नहीं रुक पायेगा
उसे अब जाना ही होगा..
अब अगर रुक गया
जा नहीं पाएगा
फिर कभी..
शाम भी हो रही थी
जाना ही होगा उसे
अँधेरा गहराने से पहले ही..
जाने वाले को विदा तो दे दी थी
मुड़ कर देखा भी न था
फिर क्या हुआ था !
वह क्यों रुका
थोड़ा सा ठिठक भी गया था
जाने से पहले !
उसे मुड़ कर तो नहीं देखा गया था
फिर भी
कदमों की
थमी-ठहरी
पदचाप बता गई
वह नहीं गया
रह गया था
बस गया था
थोड़ा-थोड़ा हर जगह..
यहाँ -वहां
हर कोने में
छत की मुंडेर पर भी
और
ह्रदय के तिकोने वाले हिस्से में भी।
पदचाप बता गई
वह नहीं गया
रह गया था
बस गया था
थोड़ा-थोड़ा हर जगह..
यहाँ -वहां
हर कोने में
छत की मुंडेर पर भी
और
ह्रदय के तिकोने वाले हिस्से में भी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-05-2019) को "देश और देशभक्ति" (चर्चा अंक- 3342) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद प्यारी हृदयस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteवाह बहुत उम्दा /जबरदस्त
ReplyDeleteवाह बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletebdi hi behtreen rachna hai, thanks ji
ReplyDeleteZee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara