मैंने लिखा
प्रेम !
तुमने लिखा
विदाई !
प्रेम ,
तुम्हारा नाम
विदाई है क्या !
चल पड़े
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर।
एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगे नहीं !
क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
विदाई नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।
लेकिन मनुहार
क्यों ,
किसलिए
तुम
कोई रूठे हो क्या मुझसे !
सच में रूठे हो !
फिर वंशी की धुन
किसे सुनाते हो !
प्रेम तुम
सिर्फ
जीवन हो ,
मृत्यु नहीं !
प्रेम !
तुमने लिखा
विदाई !
प्रेम ,
तुम्हारा नाम
विदाई है क्या !
चल पड़े
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर।
एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगे नहीं !
क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
विदाई नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।
लेकिन मनुहार
क्यों ,
किसलिए
तुम
कोई रूठे हो क्या मुझसे !
सच में रूठे हो !
फिर वंशी की धुन
किसे सुनाते हो !
प्रेम तुम
सिर्फ
जीवन हो ,
मृत्यु नहीं !
वाह ... प्रेममय रचना ... बंसरी अपने आप शब्दों ने बजा दी ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ---- प्रेम पर लिखी बेहद खुबसूरत रचना
ReplyDeleteसादर
प्रेम में रची बसी एक प्रस्तुती
ReplyDeleteआभार
प्रेम तुम
ReplyDeleteसिर्फ
जीवन हो ,
मृत्यु नहीं !
यही विश्वास योग्य है, यही शाश्वत है .....
इस उत्तम रचना के ले लिए बहुत सी शुभकामनायें ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति