ख़ामोशी को खामोश
समझना
भूल हो सकती है।
कितनी हलचल
अनगिनत ज्वार भाटे
समाये होते है।
आँखों में समाई नमी
जाने कितने समंदर
छिपाए होते हैं।
नहीं टूट ते यह समंदर
ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई
कंधे को छू कर ना कहे
कि
मैं तुम्हारे साथ हूँ !
समझना
भूल हो सकती है।
कितनी हलचल
अनगिनत ज्वार भाटे
समाये होते है।
आँखों में समाई नमी
जाने कितने समंदर
छिपाए होते हैं।
नहीं टूट ते यह समंदर
ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई
कंधे को छू कर ना कहे
कि
मैं तुम्हारे साथ हूँ !
सच है जरूरी हो जाता है कई बार एक स्पर्श जो अपनेपन का एहसास कराता है ...
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
सुन्दर
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