प्रेम
कभी -कभी
तुम
दुःख हो ,विषाद हो।
और
कभी कभी
तुम
उदासी भी हो।
दूर से नज़र आती
रोशनी हो जैसे।
जो
दिखाई तो दे
मगर
उजाला ना करे।
जलती रहे
दिल में
जलाये ही दिल को।
प्रेम
कभी -कभी
तुम ......
कभी -कभी
तुम
दुःख हो ,विषाद हो।
और
कभी कभी
तुम
उदासी भी हो।
दूर से नज़र आती
रोशनी हो जैसे।
जो
दिखाई तो दे
मगर
उजाला ना करे।
जलती रहे
दिल में
जलाये ही दिल को।
प्रेम
कभी -कभी
तुम ......
बहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : बिन रस सब सून
बहुत शुक्रिया जी
Deleteसच कहा.
ReplyDeleteप्रेम जो दिखाई देता हैं वो होता नही,जो होता हैं वो दीखता नही..
बहुत शुक्रिया जी....
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना..
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी..
Deleteखूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी......
Deleteबहुत सुंदर रचना ....
ReplyDeleteप्रेम !
ऐसा ही है ....
कभी कभी ही नहीं, हमेशा ही .....
आग का दरिया है और डूब के जाना है ......
शुभकामनायें .....
बहुत शुक्रिया जी।
Deleteहमेशा नहीं ! कभी -कभी ही।
प्रेम तो हमेशा मुस्कान ही है , दिल को छू जाये ऐसा अहसास है।
सही कहा आपने ....
Deleteप्रेम
Deleteकभी -कभी
तुम ......
छुप कर आते हो
कायर से
प्रेम चुपचाप किया जाये तो गुनाह बन जाता
स्वीकृति मिल जाए तो पुलकित कर देता मन का कोना
बहुत शुक्रिया जी...
ReplyDeleteशानदार पोस्ट...
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