बरसों बाद
तुमको देखा तो ये
ख़याल आया ...
'कि जिन्दगी धूप
तुम घना साया !'
तुम घना साया !'
नहीं ऐसा तो नहीं सोचा मैंने !
जिंदगी में ,
जिंदगी में ,
विटामिन- डी के लिए
धूप की भी तो जरुरत
होती है
तुम को देखा तो
मुझे ख्याल आया
उन खतों का
जो तुमने
जो तुमने
लिखे थे कभी मुझे ...
वे खत
मैंने अपनी यादों में
और खज़ाने की तरह
मैंने अपनी यादों में
और खज़ाने की तरह
एक संदुकची में संभाल कर
रखे है
देख कर उनको
देख कर उनको
तुम्हें भी याद कर लिया करती हूँ
तुमको देखा तो
अब फिर से ख्याल आया
तुमको देखा तो
अब फिर से ख्याल आया
जो मैंने तुम्हें ख़त लिखे थे
वे मुझे वापस लौटा दो ...
देखो गलत ना समझो मुझे
वे अब तुम्हारे भी किस
काम के है
समझने की कोशिश तो
समझने की कोशिश तो
करो जरा मुझे ...!!
अरे !!
महंगे होते जा रहे है
महंगे होते जा रहे है
गैस -सिलेंडर।
अब चूल्हा जलाने के काम
आयेंगे ना
तुम्हारे और मेरे ख़त ...!!!
very nice
ReplyDeleteहाँ और क्या ,और भी ग़म हैं ज़माने में ..!
ReplyDeleteहास्य और गंभीरता ... दोनों के साथ साथ जीवन का सत्य भी ...
ReplyDeletewah nice ,last line ne achanak smile laa diya .
ReplyDeleteअच्छी लगी रचना.
ReplyDeleteवाह, अलग तेवर की कविता
ReplyDeleteItane pyar se saare khat maang ke jla dene k khyaal accha hai... Sunder lagi rachna bahut!!!
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