Saturday 17 November 2012

तेरी शक्ति तुझी में निहित है ....

कहाँ भटकती है तू
बन-बन
कस्तूरी मृग की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझ में ही
निहित ...

एक बार सर तो उठा
आसमान खुला है तेरे लिए भी
एक बार बाहें तो फैला
भर ले आसमान ,
इनमे ...

एक बार आवाज़ उठा के तो
 देख ,
देख तो सही  एक आवाज़ पर
कितने हौसले बुलंद हो उठेंगे
कितने ही कदम तेरे साथ
बढ़ चलेंगे ...
मत भटक किसी मसीहा की
तलाश में
ना भ्रम रख किसी के
आने का ...

मत भटक तू  कस्तुरी मृग
की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझी में
निहित  ...


8 comments:

  1. शक्ति को पहचानने का आह्वान करती सुंदर रचना

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  2. अच्छी रचना पढ़ने को मिली काफी लंबे अंतराल बाद ...बधाई उपासना जी

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  3. सार्थक, सकारात्मक , आत्मविश्वास बढ़ाती रचना .. बधाई !

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  5. housla badhati hui rachna ,bahut sundar badhai

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