Monday, 6 November 2017

अब नहीं लौटेगा आहत मन..

चले ही जाते हैं
जाने वाले
एक-न -एक दिन ,
दामन छुड़ा कर।

क्या जाने वो ,
कोई
ढूंढता है
उसे ,
दर-दर ,
भटकता है
दर-ब -दर।

क्यों सोचता है
फिर
दामन छुड़ा जाने वाला
क्यों तलाशता है
रुक कर
क़दमों के निशान

क्यों सुनता है
ना आने वाली
कभी भी
उन कदमों की आहट।

 मत ढूंढ अब ,
उसे ,
जिससे दामन छुड़ाया था कभी।

मत सुन
रुक कर आहट ,
अब नहीं लौटेगा
आहत मन।

आहतमना
अब विलीन होने को है।
समा जाने को आतुर है
कण -कण हो कर
इस ब्रह्माण्ड में।





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