Wednesday, 23 May 2012

ना जाने क्योँ

फूलोँ की सुंदर
महकती डगर पर
चलते - चलते
ना जाने क्योँ
वो टेढी - मेढी 
कंटीली पगडंडियाँ,
जिन पर कभी कदम
रखा ही नहीँ ,
याद आती है.....
चारोँ तरफ जब
बिखरी हुई है
अनमोल मणियां,

सीप मेँ बँद

एक मोती, जो 
कभी सीप से
बाहर निकला ही 
नहीँ था 
,जाने क्योँ याद
आती है....

4 comments:

  1. बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. बहुत सुंदर गहन अभिव्यक्ति,,,,बेहतरीन रचना,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  3. बहुत सुन्दर
    ( अरुन =arunsblog.in)

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