ना जाने क्योँ
फूलोँ की सुंदर
महकती डगर पर
चलते - चलते
ना जाने क्योँ
वो टेढी - मेढी
कंटीली पगडंडियाँ,
जिन पर कभी कदम
रखा ही नहीँ ,
याद आती है.....
चारोँ तरफ जब
बिखरी हुई है
अनमोल मणियां,
सीप मेँ बँद
एक मोती, जो
कभी सीप से
बाहर निकला ही
नहीँ था
,जाने क्योँ याद
आती है....
बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गहन अभिव्यक्ति,,,,बेहतरीन रचना,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बहुत सुन्दर
ReplyDelete( अरुन =arunsblog.in)
waah upasna sakhi ..........
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