Monday 23 April 2018

प्रेम तुम तब भी रहोगे

एक दिन
जब
यह धरा नहीं रहेगी,
धरा को घेर लेने वाले
ग्रह-नक्षत्र
नहीं रहेंगे ,
धरा को नापने वाले
दोनों ध्रुव
नहीं रहेंगे ,
धरा को
ढ़क लेने वाले
वृक्ष, नदियाँ - सागर
भी नहीं रहेंगे ,
प्रेम
तुम तब भी रहोगे |

Sunday 1 April 2018

फिर भी इंतज़ार है ..



ना मिलने के
 दिन याद ,
ना ही बिछड़ने के
 दिन याद ,
याद रहे तो
 बस तुम।

शायद ,
जाते हुए
पतझड़ में
बहार से
आये थे तुम।
जाती हुयी
बहार में
चले भी गए थे।

यह मिलना -बिछुड़ना ,
दशकों की
बिछुड़न है
या
सदियों की ही
बिछुड़न है।
या हमेशा-हमेशा की।

फिर भी
इंतज़ार है
एक और
फिर से जाते हुए
पतझड़ में ,
आती हुई बहार का।