Sunday, 1 April 2018

फिर भी इंतज़ार है ..



ना मिलने के
 दिन याद ,
ना ही बिछड़ने के
 दिन याद ,
याद रहे तो
 बस तुम।

शायद ,
जाते हुए
पतझड़ में
बहार से
आये थे तुम।
जाती हुयी
बहार में
चले भी गए थे।

यह मिलना -बिछुड़ना ,
दशकों की
बिछुड़न है
या
सदियों की ही
बिछुड़न है।
या हमेशा-हमेशा की।

फिर भी
इंतज़ार है
एक और
फिर से जाते हुए
पतझड़ में ,
आती हुई बहार का।








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