Tuesday 24 September 2019

मत देखो नीचे

उड़ने की ठानी ही है तो
उड़ जाओ

पर फैलाओ
टिका दो
आँखे आसमान पर

मत देखो
नीचे
धरा  को

मत सोचो
धरा  के
गुरुत्वाकर्षण को

टिकेंगे जितने
तुम्हारे पैर
उतनी ही मिलेगी
 तुम्हें यह धरा

 नहीं है ये धरा
तुम्हारे रहने के लिए
तुम हो सिर्फ
आसमान की ऊंचाइयों  लिए

तलाश करो
अपने लिए
अपना एक नया आसमान

जहाँ हो,
तुम्हारे अपने ही
ग्रह -नक्षत्र
अपना ही एक सूरज
और और चाँद भी !

वहाँ
न चाँद को लगे ग्रहण
न ही सूरज को !

एक अपना
अलग ही ब्रह्माण्ड बना लो
जो हो तुम्हारा अपना ,
सिर्फ तुम्हारा !



Friday 2 August 2019

ਹੁਣ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਯਾਦ ਨਹੀ ਕਰਦੀ...

ਹੁਣ ਮੈਂ ਤੈੰਨੂੰ ਯਾਦ
ਨਹੀ ਕਰਦੀ
ਯਾਦ ਤਾਂ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਕਦੇ ਵੀ
ਨਹੀ ਕੀਤਾ ...

ਯਾਦ ਕਿਵੇਂ ਕਰਦੀ ਤੈਨੂੰ
ਤੂ ਹੀ ਬਤਾ ਮੈਨੂੰ ,
ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ
ਤੇਰੇ ਭੁਲ ਜਾਣ ਦਾ ਤਰੀਕਾ
ਹੀ ਦਸ ਜਾ ...

ਜਦੋਂ ਤੈਨੂੰ ਭੁਲ ਜਾਵਾਂਗੀ
ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ
ਤੈਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨ ਲੱਗਾਂਗੀ
ਹੁਣ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਯਾਦ ਨਹੀ ਕਰਦੀ ...

Tuesday 11 June 2019

तुम्हारे नाम की है एक रेखा

हाथ में लकीरें है
कितनी सारी
छोटी-बड़ी,
बारीक,
बारीक से भी महीन !

जीवन रेखा
दिल की रेखा
दिमाग की रेखा
और
किस्मत वाली रेखा भी !

एक रेखा भी है
तुम्हारे नाम की |

जो उँगलियों के पोरवों से
फिसलती हुई
जीवन रेखा
दिल की रेखा
दिमाग की रेखा
और
किस्मत की रेखा से
मणिबन्ध में
आकर रूकी है |

थामे रहती है
कलाई मेरी
धड़कती है मेरे हर
ह्रदय के स्पंदन में |

जीती हूँ हर पल तुम्हें
हर धड़कते स्पंदन में
तुम्हारे होने का अहसास में |

Sunday 19 May 2019

वह नहीं गया ,रह गया था

जाने वाले ने तो कहा था
नहीं रुक पायेगा
उसे अब जाना ही होगा..

अब अगर रुक गया
जा  नहीं पाएगा
फिर कभी..

शाम भी हो रही थी
जाना ही होगा उसे
अँधेरा गहराने से पहले ही..

जाने वाले को विदा तो दे दी थी
मुड़ कर देखा भी न था
फिर क्या हुआ था !

वह क्यों रुका
थोड़ा सा ठिठक भी गया था
जाने से पहले !

उसे मुड़ कर तो नहीं देखा गया था
फिर भी
कदमों की 
थमी-ठहरी
पदचाप बता गई

वह नहीं गया 
रह गया था
बस गया था
थोड़ा-थोड़ा हर जगह..

यहाँ -वहां
हर कोने में
छत की मुंडेर पर भी
और
ह्रदय के तिकोने वाले हिस्से में भी।







Sunday 17 February 2019

अब तुम ही बतालओ

सुनो
आज सपने में देखा
जा रही हूँ
मैं
एक लम्बी सड़क पर
नीम अंधेरा है..

सड़क पर
एक हरा ,ताजा
टहनी से टूटा हुआ
बड़ा सा लट्ठ..

अंधेरे से डरने वाली को
सहारा है यह लट्ठ..

दूर - लम्बी सड़क पर
खड्डा नजर आता है
और
खड्डे में है पानी भरा..

खड़ी रहती हूँ
मैं
किन्कर्तव्यमूढ़ सी ..

लगा था मुझे
यह सड़क
जरिया होगी
सपने में ही सही,
तुमसे मिलने की..

अब तुम ही
बतलाओ जरा
सपने को बूझो जरा
तुम तक आऊँ तो कैसे भला !