मैंने लिखा
प्रेम !
तुमने लिखा
विदाई !
प्रेम ,
तुम्हारा नाम
विदाई है क्या !
चल पड़े
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर।
एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगे नहीं !
क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
विदाई नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।
लेकिन मनुहार
क्यों ,
किसलिए
तुम
कोई रूठे हो क्या मुझसे !
सच में रूठे हो !
फिर वंशी की धुन
किसे सुनाते हो !
प्रेम तुम
सिर्फ
जीवन हो ,
मृत्यु नहीं !
प्रेम !
तुमने लिखा
विदाई !
प्रेम ,
तुम्हारा नाम
विदाई है क्या !
चल पड़े
यूँ मुँह फेर के ,
पीठ घुमा कर।
एक बार भी
मेरी पुकार
क्या तुम
सुनोगे नहीं !
क्यूंकि
प्रेम का अर्थ
विदाई नहीं है।
केवल
प्रेम ही है,
मनुहार भी है।
लेकिन मनुहार
क्यों ,
किसलिए
तुम
कोई रूठे हो क्या मुझसे !
सच में रूठे हो !
फिर वंशी की धुन
किसे सुनाते हो !
प्रेम तुम
सिर्फ
जीवन हो ,
मृत्यु नहीं !