Thursday, 5 July 2012

गांधारी

गांधारी ,आँखों से बंधी पट्टी अब तो उतार दो 
कब तक सच्चाई से आँखे बंद रखोगी ,
कितनी सदियाँ बीत गयी यूँ आँखे बंद किये 
क्या तुम्हे दुनिया का उजाला पसंद नहीं ........
मुझे तुमसे यह शिकायत तो हमेशा ही रहेगी ,
के तुमने आँखों के साथ-साथ ,
अपने विवेक पर भी पट्टी बांधी थी .......
एक नेत्रहीन का मार्ग-दर्शन करने के बजाय
तुमे अपनी ही आँखे बंद करली .........
क्या तुमने एक सच्ची सहचरी होने का निबाह किया ,
क्या एक माँ होने का कर्तव्य -पालन किया ........
तुमने बेशक एक पत्नी का ये कर्तव्य जाना हो
पर मैं सोचती हूँ के पति को सही राह दिखाना भी
तो तुम्हारा कर्तव्य था ...
तुम नेत्रहीन हो गयी और तुम नेत्रहीन हो गयी और

 तुम्हारी संतान 
दिशाहीन हो गई........
तुम्हारी ये पट्टी अभी भी 
नहीं खुली तो तुम्हारी संतति 
यूँ ही दिशाहीन होती जाएगी ..................

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती रचना .

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  2. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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    बेहतरीन रचना

    सावधान सावधान सावधान
    सावधान रहिए



    ♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥

    ♥ सावधान: एक खतरनाक सफ़र♥


    ♥ शुभकामनाएं ♥

    ब्लॉ.ललित शर्मा
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  4. माँ के लिए भी मोह की पट्टी उतारनी ज़रूरी है ...नहीं तो बच्चे दिशा हीं हो जाते हैं .... गांधारी से सटीक प्रश्न

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