महाभारत का कारण
अक्सर
असंयमित वाणी
और असंयमित आचरण
ही होता है ........
शांतनु ने अगर काम पर
संयम रखा होता
तो क्या ,
देवव्रत को भीष्म होना
पड़ता ...!
तब
महाभारत की नीव ही नहीं
रखी जाती .......
गांधारी का भी तो आचरण
असंयमित ही था ,
अगर
अपने नेत्रों पर पट्टी
ना बांधी होती
तो क्या ,
उसकी संतान ऐसी
कुसंस्कारी और दुष्कर्मी
होती ,
ना ही महाभारत की
सम्भावना होती .........
अगर संयमित आचरण
दुर्योधन ने भी किया होता
तो क्या ,
वह रिश्तों को तार - तार
करता...!
और ना ही महाभारत होती ...
द्रोपदी को भी तो
थोड़ा संयम अपनी वाणी
पर रखना ही था......
आखिर असंयमित वाणी
ही तो कारण होती है
महाभारत का...
महाभारत का कटु सत्य .....बहुत खूब
ReplyDeleteअसंयमित वाणी और आचरण ही झगड़े की फसाद होते है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
कटु सत्य...
ReplyDeleteसंयम न हो तो महाभारत होना लाज़मी है ... सटीक व्याख्या ।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा .....बात ही हाथी पाइए और बात ही हाथी पाँव
ReplyDeleteखुबसूरत बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआजकल सययम है कहाँ सखी ...बच्चों की तो छोडो बड़ो में भी नहीं है ....सही लिखा बिलकुल ...
ReplyDeleteसही कहा आपने संयम बड़े काम की चीज है. सुंदर कविता.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी
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