Tuesday, 16 October 2012

रंग


दो कजरारी आंखे 
झपकाते हुए ,
सागर की  सी गहराई लिए 
आँखों से ...

मैं अक्सर 

तुम्हारी तस्वीर में
अपने रंग खोजती हूँ ,
जो रंग 

 कभी मैंने तुम्हें दिए थे ,
उनका क्या हुआ ...


सागर की सी गहराई लिए 
दो आँखे ,
 
कजरारी आँखों को 
एक टक देखते हुए ...

हाँ वो रंग,
 अभी भी मेरे पास है और 
बहुत प्रिय भी 

उन रंगों को  चाह कर 
भी मेरे जीवन 
के केनवास पर नहीं 

उतार पाता...

 मैंने वो  रंग 
अपने मन के कैनवास पर 
सजा रखे है 
कजरारी आँखें बरस पड़ी 
सागर सी गहराई वाली
 आँखों की गहराई 
कुछ और गहरी हो गयी ....

27 comments:

  1. वाह ...वो रंग तो आँखों सेदिल में उतर गया उपासना सखी ....

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  2. main aksar khojti hu woh rang jo tumne kabhi diye hi nhi they .............. superb

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  3. संवेदन भाव लिए भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

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  4. संवेदनशील भावमय उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,,
    नवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,

    RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी

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  5. बहुत सुन्दर भाव लिए मन की भावनाएं

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  6. गहन भाव उम्दा रचना

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  7. वाह बहुत खुबसूरत।

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  8. आहा ! अति सुन्दर..

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  9. वाह ... क्‍या बात लाजवाब करते शब्‍द

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  10. बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना.बहुत बधाई आपको

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  11. सशक्त अभिव्यक्ति...

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  12. समय के साथ जब बहुत कुछ बदल सा जाता है तब रह रह कर मन को कचोटने लगता है और फिर ऐसी कविता बन बाहर निकलने को आतुर हो उठती हैं ..बहुत सुन्दर

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  13. बहुत सुन्दर भाव..........

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  14. SACH ME BEHAD BHHAV BHARI RACHNA HAI AAPKI.BADHAI

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