दो कजरारी आंखे
झपकाते हुए ,
सागर की सी गहराई लिए
आँखों से ...
मैं अक्सर
तुम्हारी तस्वीर में
अपने रंग खोजती हूँ ,
जो रंग
कभी मैंने तुम्हें दिए थे ,
उनका क्या हुआ ...
सागर की सी गहराई लिए
दो आँखे ,
कजरारी आँखों को
एक टक देखते हुए ...
हाँ वो रंग,
अभी भी मेरे पास है और
बहुत प्रिय भी
उन रंगों को चाह कर
भी मेरे जीवन
के केनवास पर नहीं
उतार पाता...
मैंने वो रंग
अपने मन के कैनवास पर
सजा रखे है
कजरारी आँखें बरस पड़ी
सागर सी गहराई वाली
आँखों की गहराई
कुछ और गहरी हो गयी ....
वाह ...वो रंग तो आँखों सेदिल में उतर गया उपासना सखी ....
ReplyDeleteबहुत आभार
Deletemain aksar khojti hu woh rang jo tumne kabhi diye hi nhi they .............. superb
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteसंवेदन भाव लिए भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteसंवेदनशील भावमय उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
बहुत सुन्दर भाव लिए मन की भावनाएं
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteगहन भाव उम्दा रचना
ReplyDeleteवाह बहुत खुबसूरत।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 18-10 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
मलाला तुम इतनी मासूम लगीं मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते हैं ....। .
आहा ! अति सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteवाह ... क्या बात लाजवाब करते शब्द
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteसशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसमय के साथ जब बहुत कुछ बदल सा जाता है तब रह रह कर मन को कचोटने लगता है और फिर ऐसी कविता बन बाहर निकलने को आतुर हो उठती हैं ..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteबहुत सुन्दर भाव..........
ReplyDeleteबहुत आभार
DeleteSACH ME BEHAD BHHAV BHARI RACHNA HAI AAPKI.BADHAI
ReplyDeleteबहुत आभार
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